'गोत्र के नाम का न केवल गोत्र के सभी पुरुष सदस्य प्रयोग करते है, जिनमे गोत्र द्वारा अंगीकृत और संरक्षित लोग भी शामिल है, बल्कि स्त्रिया भी उसका प्रयोग करती है। हा, केवल दासो को गोत्रो के नाम का इस्तेमाल करने का हक नही होता... कबीला" (मोम्मसेन ने यहां gens का अनुवाद stamm -- कवीला-किया है। .. एक ऐसा जन-समुदाय होता है जिसके सदस्यों को एक ही पूर्वज- वास्तविक, ग्रहीत अथवा कल्पित -का वंशज समझा जाता है और उसे समान रीति-रिवाज, समान कब्रिस्तान और विरासत के समान नियम एकता के सूत्र में बांधे रहते है। व्यक्तिगत रूप से स्वतन्त्र सभी व्यक्तियों को, और इसलिये स्त्रियो को भो, इसके सदस्यो के रूप में अपना नाम दर्ज कराना पड़ता था। परन्तु किसी विवाहिता स्त्री का गोत्र का नाम निश्चित करने में थोड़ी कठिनाई होती है। जाहिर है कि जब तक यह नियम था कि स्त्रिया अपने गोन के सदस्यो के सिवा और किसी से विवाह नहीं कर सकती, तब तक उनका गोत्र का नाम निश्चित करने में कोई कठिनाई नहीं होती थी, और यह वात भी स्पष्ट है कि एक लम्बे समय तक स्त्रियों के लिये गोत्र के वाहर विवाह करना अपने गोत्र के भीतर विवाह करने के मुकाबले बहुत कठिन होता था। छठी शताब्दी तक भी यह gentis enuptio- गोन के बाहर विवाह करने का अधिकार-कुछ खास-खास व्यक्तियो को व्यक्तिगत विशेषाधिकार एवं पुरस्कार के रूप में दिया जाता था... परन्तु आदिम काल में जब कभी स्त्रियों का ऐसा विवाह होता होगा, तब उन्हें अपने पति के कबीते मे शामिल कर दिया जाता होगा। इससे अधिक निश्चय के साथ और कोई बात नही कही जा सकती कि पुराने धार्मिक विवाह के द्वारा स्त्री पूरी तरह से अपने पति के कानूनी एवं धार्मिक समुदाय की सदस्या हो जाती थी और स्वयं अपने समुदाय को छोड़ देती थी। यह कौन नहीं जानता कि विवाहिता स्त्री अपने गोत्र के सम्बन्धियों की सम्पत्ति पाने और उन्हे अपनी सम्पत्ति देने का अधिकार खो देती है, और वह अपने पति , अपनी सन्तान और पति के गोत्र के सदस्यों के उत्तराधिकार-समूह में शामिल हो जाती है ? और यदि स्त्री का पति उसे अपनी सन्तान के रूप मे स्वीकार कर लेता है और उसे अपने परिवार में शामिल कर लेता है, तव वह उसके गोत्र से कसे अलग रह सकती है?" (पृ० १-११)। इस प्रकार, मोम्मसेन का कहना है कि रोमन स्त्रियां शुरू में केवल अपने गोन के भीतर ही विवाह करने की स्वतन्त्रता रखती थी; अतः १५०
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