जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, विवाह का रूप युग्म-परिवार का था जो धीरे-धीरे एकनिष्ठ विवाह में बदलता जा रहा था। अभी एकनिष्ठता का सख्ती के साथ पालन नही किया जाता था क्योकि विशिष्ट वर्ग के लोगों को कई पत्नियां रखने की इजाजत थी। केल्ट लोगो के विपरीत जर्मन लोग मोटे तौर पर इस बात पर सख्ती के साथ जोर देते थे कि तड़कियों का कौमार्य नष्ट न हो। टेसिटस इस बात का बड़े उत्साह के साथ जिक्र करता है कि जर्मनों मे विवाह का बधन अटूट समझा जाता था। वह बताता है कि तलाक़ की इजाजत केवल उसी सूरत में मिलती थी जब स्त्री ने पर-पुरुष के साथ व्यभिचार किया हो। परन्तु टेसिटस की रिपोर्ट में अनेक कमियां है और इसके अलावा यह बात भी है कि सदाचार का उदाहरण सामने रखकर वह दुराचारी रोमवासियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने की जरूरत से ज्यादा कोशिश करता है। इतनी बात तो हम निश्चय के साथ कह सकते है कि जंगलों में रहते हुए जर्मन लोग भले ही सदाचार और नैतिकता के आदर्श रहे हों, पर बाहरी दुनिया का स्पर्श मान ही उन्हें यूरोप की दूसरी औसत जातियो के धरातल पर खीच लाने के लिये काफ़ी था। रोमन जीवन के तेज भंवर में पड़कर जर्मनी की कठोर नैतिकता के मन्तिम चिह्न , उनकी भाषा से भी अधिक शीघ्रता से मिट गये। इसके लिये तूर्स के ग्रेगरी द्वारा लिखित इतिहास को पढ़ना काफी है। कहने की आवश्यकता नहीं कि जर्मनी के आदिम जंगलों में वह ऊचे दरजे की ऐयाशी सम्भव नहीं थी, जो रोम में सम्भव थी। इसलिये इस मामले में भी जर्मन लोग रोमवासियों से काफी बेहतर थे, लेकिन यह मानने के लिये जर्मनों को जितेन्द्रिय बना देना आवश्यक नहीं है, क्योंकि कोई भी पूरी की पूरी जाति ऐसी कभी नहीं हुई है। गोन-व्यवस्था से हर आदमी का यह कर्तव्य पैदा हुआ कि वह अपने पिता तथा सम्बन्धियों के दुश्मनों को अपना दुश्मन माने और उनके दोस्तों को अपना दोस्त । उसी से “वेरगिल्ड" (wergild) को प्रथा पैदा हुई जिसमें किसी हत्या या चोट के बदले में जुर्माना अदा कर देने से काम चल जाता था और रक्त-प्रतिशोध की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। एक पीढ़ी पहले "वेरगिल्ड" को एक ऐसी प्रया समझा जाता था जो खास तौर पर जर्मनों में पायी जाती यो ; परन्तु अब यह साबित हो चुका है कि रक्त-प्रतिशोध का यह अधिक इल्का रूप सैकड़ों जातियों में पाया जाता था और यह १७६
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