- मैक-लेनन ने अपनी 'आदिम विवाह' के एक नये संस्करण मे ('प्राचीन इतिहास का अध्ययन', १८७५) अपने सिद्धान्त की रक्षा की। यद्यपि वह खुद केवल प्रमेयों के आधार पर परिवार का पूरा इतिहास बहुत ही बनावटी ढंग से गढ़ डालते है, तथापि लेब्बोक और मौर्गन से वह मांग करते है कि वे अपने प्रत्येक वक्तव्य के लिये न सिर्फ प्रमाण पेश करें, बल्कि ऐसे अकाट्य और निर्विवाद प्रमाण पेश करें जैसे प्रमाण ही स्काटलैंड की अदालतों में स्वीकार्य हो सकते है। और यह मांग वह आदमी करता है जो जर्मनों में मामा-भाजे के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध होने से (टेसिटस , 'जेर्मनिया', अध्याय २०), सीजर की इस रिपोर्ट से कि विटन लोगों में दस-दस बारह-बारह पुरुष सामूहिक पत्नियां रखते थे, और बर्बर लोगों में सामूहिक पत्नियों की प्रथा होने के बारे में प्राचीन लेखकों को अन्य तमाम रिपोर्टों से , बिना किसी हिचकिचाहट के, यह निष्कर्ष निकाल डालता है कि इन तमाम लोगों में बहु-पति प्रथा का नियम था! उनकी बातों को पढकर ऐसा लगता है जैसे कोई सरकारी वकील अपने पक्ष में बहस करते समय तो हर तरह की मनमानी करता है, पर बचाव पक्ष के वकील से माग करता है कि वह अपने हर शब्द को सिद्ध करने के लिये बिलकुल पक्के और कानूनी तौर से एकदम सही सबूत पेश करे। यूथ-विवाह कल्पना की उड़ान भर है- मैक-लेनन कहते है, और इस तरह वह वाखोफेन की तुलना में भी बहुत पीछे चले जाते है। उनका कहना है कि मोर्गन ने जिन्हें रक्त-सम्वन्धो की व्यवस्थाएं समझा है, वे सामाजिक शिष्टाचार के नियमों से अधिक कुछ नहीं है और इसका प्रमाण यह है कि अमरीकी इंडियन अजनबियों, गोरे तोगों, को भी भाई या पिता कहकर पुकारते हैं। यह तो वैसी ही बात हुई जैसे कोई कहे कि चूंकि कैथोलिक पादरियों और भिक्षुणियों को लोग पिता और माता कहते है, और चूंकि मठवासी और मठवासिनियां, और यहां तक कि इंगलैंड में अलग-अलग धंधों के शिल्प-संघों के मेम्बर और फ्रीमेसन भी सभा-सम्मेलनों में एक दूसरे को भाई-बहन कहते है, इसलिये पिता, माता, भाई बहन पन्त सम्बोधन करने के अलग-अलग ढंगों के सूचक मात्र है ये अभिनेका कार अर्थ नहीं है। संक्षेप, में यह कि अपने पक्ष की पुष्टि नन का तक बेहद कमजोर था।
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