B&G, L. Maurer. Einleitung zur Geschichte der Mark-, Holo, Dorf- und Stadt-Verfassung und der öffentlichen Gewalt. München, 1854. Geschichte der Niarkenverfassung in Deutsch. land. Erlangen, 1856. Geschichte der Fronhöfe, der Bauern- höfe und der Hofuerfassung in Deutschland, Bd. I-IV, Erlangen, 1862-1863.Geschichte der Dorfverfassung in Deutsch- land, Bd. I-II, Erlangen, 1865-1866. Geschichte der Städte- verfassung in Deutschland, Bd. I-IV, Erlangen, 1869-1871. -पृ० १२१ 87" तटस्य जाति"- एक सैनिक संश्रय, जिसे १७वी शताब्दी में कुछ इंडियन कबीलो ने स्यापित किया था। ये कबीले इरोक्वा लोगो से मिलते- जुलते थे और इरी झील के उत्तरी तट पर रहते थे। फासीसी उपनिवेशको ने उनके लिये इस नाम का प्रयोग इसलिये किया कि ये लोग असली इरोक्वा कबीले और हरोन लोगों के बीच होनेवाली लड़ाइयो में तटस्थ रहे। -पृ० १२३ 88 यहां इशारा ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के विरुद्ध जूलुओं और नूबियन कबीलों के जातीय मुक्ति संग्राम से है। जनवरी, १८७६ में अंग्रेज़ो के हमले के बाद केचवाइयो के नेतृत्व मे जूलुमो ने आधे वर्ष तक डटकर उपनिवेशवादियों का सामना किया। अग्रेज कई लड़ाइयों के बाद और अपने उत्कृष्ट हथियारो के बल पर ही विजय प्राप्त कर सके। वे जूलुओं पर अपना पूर्ण आधिपत्य काफी बाद में, १८८७ में जाकर ही स्थापित कर सके। इसमे अग्रेजो ने विभिन्न जूलू कबीलो के बीच अन्तर्कबीला लड़ाइयों का सहारा भी लिया, जो कई वर्ष तक जारी रही। मौलवी मुहम्मद अहमद के नेतृत्व मे, जो अपने को "महदी" कहता था, नूबियन कवीलों, भरवो और सूडान की अन्य कौमो का राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष १८८१ मे शुरू हुआ। १८८३-१८८४ में उसे कई सफलताए प्राप्त हुई और लगभग सारे सूडान को ब्रिटिश उपनिवेशवादियों से मुक्त करा लिया गया, जो आठवे दशक मे उसमे २३८
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