148 Codex Loureshamensis-लार्श मठ के अधिकारपत्रों का एक संग्रह, जो १२ वीं शताब्दी में तैयार किया गया था यह एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है जिससे ८ वी-६ वी शताब्दियों में किसानी और सामंती भूमि-संपत्ति व्यवस्था पर प्रकाश पडता है। - पृ० १८२ 149 Plinius, Natural History, XVII), 17.-% 953 150 Plinius, Natural History, IV, 14. -90 95€ 151 Liutprand, Recompence, VI, 6.-90 983 182 Salvianus, De gubernatione Dei, V, 8. - 988 15 अग्रहार (Beneficium) भूमि के रूप दिये जानेवाले वेतन अथवा वृति का एक रूप था। तेरहवी सदी के पूर्वाधं मे फ्रैंकों के राज्य में इसका व्यापक प्रचलन था। इसके अनुसार वेतन अथवा वृत्ति के रूप में प्रदत्त भूमि और उस पर काश्त करनेवाले किसान जीवनपर्यन्त अग्रहार पानेवाले के अधिकार क्षेत्र में आ जाते थे। किसानो को उसके लिये अपनी कुछ सेवायें, मुख्यतः सैनिक सेवा , अर्पित करनी पडती थी। अग्रहार पानेवाले की मृत्यु पर या उसके अपने कर्तव्यो को न निभाने और भूमि को बंजर छोड़ने पर भूमि उमके मालिक अथवा उनके उत्तराधिकारी को वापस दे दी जाती थी, और अग्रहार के नवीकरण के लिये नये अधिकारपन्न की जरूरत होती थी। अग्रहार पाने के लिये न केवल शासकीय कर्मचारी, बल्कि चर्च मौर बड़े भी लालायित रहते थे। अग्रहार की प्रथा ने सामंती, विशेषतः निम्न तया मध्यम दरवारियो के वर्ग के प्राविर्भाव , किसानों के भूमिदासो में परिवर्तन और सामंती संबंधों तथा मामती अधिक्रम के विकास में सहायता दी। परिणामस्वरूप अग्रहार खानदानी जागीरों में परिवर्तित हो गये। एंगेल्म ने अपनी 'फेक काल' शीपंक रचना में सामंतवाद के प्रभ्युदय में अग्रहार प्रया की भूमिका का विस्तार मे विवेचन किया है।-पृ० १६६ "नितों के काउंट (Caugrafen)-प्रंक गज्य में पार्टियों-जिलों- में प्रशामन के लिए नियुक्त शाही अफगर, जिन्हे मुकदमे वा मला २४५
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