"पहले हर माल आत्मसमर्पण करना पड़ता था, अब एक बार आत्मसमर्पण करके काम चल जाता है। पहले विवाहिता स्त्रियो को हैटेरा होना पडता था, अब केवल कुमारियों को। पहले यह विवाह के दौरान होता था, अब विवाह के पहले। पहले विना किसी भेदभाव के हर किसी के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ता था, अब कुछ खास- खास व्यक्तियों के सामने आत्मसमर्पण करने से काम चल जाता है। ('मातृ-सत्ता', पृष्ठ १६) । दूसरी जातियो में धार्मिक आवरण भी नही है। प्राचीन काल के श्रेसियावासियो, केल्ट आदि जातियो के लोगो में, भारत के बहुत-से आदिवासियो में, मलय जाति में, प्रशान्त महासागर के द्वीपों में रहनेवालो में और बहुत-से अमरीकी इडियनों में तो आज भी विवाह के समय तक लड़कियो को अधिक से अधिक यौन-स्वतंत्रता रहती है। विशेष रूप से, पूरे दक्षिणी अमरीका में यह वात पायी जाती है। यदि कोई प्रादमी थोड़ा भी इस देश के अन्दरूनी हिस्सों में गया है, तो वह जरूर इस बात की गवाही दे सकता है। उदाहरण के लिये, वहा के इडियन नस्ल के एक धनी परिवार के बारे मे एगासिज ने (१८८६ मे बोस्टन और न्यूयार्क से प्रकाशित अपनी पुस्तक 'प्राजील की यात्रा' मे पृष्ठ २६६ पर 4) यह लिखा है कि जब परिवार की पुत्री से उसका परिचय कराया गया और उसने लड़की के पिता के विषय मे पूछा, जो उसको समझ मे लड़की की मा का पति था, और पैरागुए के खिलाफ युद्ध मे एक अफसर की हैसियत से सक्रिय भाग ले रहा था, तो मां ने मुस्कराते हुए जवाब दिया : nas tern pai, & filha da fortuna, अर्थात् “इसका पिता नही है, यह तो मयोग की संतान है।" "इंडियन या दोगली नस्ल की स्त्रियां अपनी जारज संतान के बारे में यहा सदा इसी ढंग से जिक्र करती है। इसमें कोई दोप-पाप या लज्जा की बात है, इसकी उनमें तनिक भी चेतना नहीं दिखायो देती। यह इतनी साधारण बात है कि इसकी उल्टी बात ही अपवाद (प्रायः) 'वच्चे" (केवल ) अपनी मा के वारे में ही जानते हैं, क्योकि उनकी परवरिश की पूरी जिम्मेदारी मा पर ही पड़ती है। बच्ची को अपने पिता का कोई ज्ञान नही होता, और न ही शायद स्त्री को कभी यह खयाल होता है कि उसका या उसके बच्चो का उस पुरुप पर कोई दावा है । " 65 14 मालूम पड़ती है। 3 5-410
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