अव पुरुषों की जो एकमात्र सत्ता स्थापित हुई उसका पहला प्रभाव पास पली और बच्चे होते थे, और पूरे मंगठन का उद्देश्य एक सीमित यदलने की चेष्टा करता है ! जब भी कोई प्रत्यक्ष हित पर्याप्त प्रेरणा प्रदान करता है, वह परम्परा को तोड़ने के लिये परम्परा के अन्दर छिद्र दद निकालता है। (मासं)" इसका परिणाम यह हुमा कि बेहद गड़बडी मच गयी और उसे ठीक करने का सिर्फ यह रास्ता रह गया कि मातृ-मत्ता की जगह पितृ-सत्ता कायम की जाये। ऐसा ही करके कुछ हद तक यह गडबडी दूर भी की गयी। “कुल मिलाकर यह बहुत ही स्वाभाविक संफमण मालूम पडता है।" (भाषर्म ) जहा तक इस बात का सम्बन्ध है कि दुनिया की संस्कृत जातियों में यह परिवर्तन जिन तरीको और उपायों से किया गया, उनके बारे में तुलनात्मक विधिशास्त्र के विशेषज्ञों का क्या पहना है -- जाहिर है कि उनके मत प्रमेय मान है-पाठक म० कोवालेप्स्की की 'परिवार और सम्पत्ति को उत्पत्ति और विकास की रूपरेखा' नामक पुस्तक को देखें, जो स्टॉकहोम से १८६० में प्रकाशित हुई थी।" मातृ-मत्ता का विनाश नारी जाति को विश्व एतिहासिक महत्त्व को पराजय यो। अब घर के अन्दर भी पुरुप ने अपना प्राधिपत्य जमा लिया। नारी पदच्युत कर दी गयी। वह जकड़ दी गयी। वह पुरुष की वासना की दासी , संतान उत्पन्न करने का एक यंत्र मान बनकर रह गयी। चीर-काल के , और उससे भी अधिक बलासिकीय काल के यूनानियों में नारी की यह गिरी हुई हैसियत पास तौर पर देखी गयी। बाद में धीरे-धीरे तरह-तरह के प्रावरणो से ढंककर और सजाकर, और आशिक रूप में थोड़ी नरम शक्ल देकर, उसे पेश किया जाने लगा, पर वह कभी दूर नहीं हुई। परिवार के एक अन्तरकालीन रूप - पितृसत्तात्मक परिवार की शक्ल - मे प्रगट हुआ, जिसका उस काल मे आविर्भाव हुआ। इस रूप की मुख्य विशेषता बहु-पली विवाह नही थी- उसका तो हम आगे जिक्र करेंगे। उसकी मुख्य विशेषता यह थी कि कई स्वतन्त्र तया अधीन लोग परिवार के मुखिया की पित मत्ता के अधीन एक परिवार में संगठित होते थे। सामी लोगो में इस परिवार के मुखिया के पास कई पलिया होती थी, अधीन लोगों के क्षेत्र के अन्दर पशुओं के रेवडों और ढोरी की देख-रेख करना होता 16 43 था।
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