और उसी इलाके मे , पंजाब मे और देश के पूरे उत्तर-पश्चिमी भाग मे, इस प्रकार के समुदाय आज भी पाये जाते है। काकेशिया मे खुद कोवालेसी ऐसे समुदाय के अस्तित्व के साक्षी है। अल्जीरिया के कवायलों में वह माज तक मौजूद है। कहा जाता है कि अमरीका में भी किसी समय इस प्रकार के समुदाय का अस्तित्व था। यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया जा रहा है कि जुरिता ने प्राचीन मैक्सिको के जिस calpullis ss का वर्णन किया है, वह इसी ढंग का कुटुम्ब-ममुदाय था। दूसरी ओर कूनोव ने ( Ausland, १८६०,57 अंक ४२--४४) काफी साफ तौर पर साबित कर दिया है कि विजय के समय पेरू में "मार्क" जैसा कोई सगठन था (और अजीब बात यह है कि इसे भी marca कहते थे), जिसमे खेती की जमीन के समय-समय पर बंटवारे की व्यवस्था थी, यानी जोत वैयक्तिक प्रकार की ही थी। कुछ भी हो, भूमि पर सामूहिक स्वामित्व तथा सामूहिक जोत के साथ पितृसत्तात्मक कुटुम्ब-समुदाय का अब एक नया ही अर्थ प्रगट होता है जो पहले नही समझा गया था। अब इसमें कोई सन्देह नहीं रह गया है कि पुरानी दुनिया की संस्कृत तथा अन्य जातियों मे इस समुदाय ने मातृसत्तात्मक परिवार और व्यक्तिगत परिवार के बीच संत्रमणकालीन रूप में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। कोवालेव्स्की ने इससे भी आगे जाकर यह कहा है कि इसी संक्रमणकालीन अवस्था मे से ग्राम-समुदाय , अथवा मार्व- समुदाय भी निकला है, जिसमे लोग खेती अलग-अलग करते थे और खेती की और चरागाह की जमीन इनके बीच , शुरू में थोडे-थोड़े निश्चित काल के लिये और बाद में स्थायी रूप से बाट दी गयी थी। लेकिन इसकी हम याद में चर्चा करेंगे। जहा तक इन कुटुम्व-ममुदायों के भीतर के पारिवारिक जीवन का सम्बन्ध है, हमें यह ध्यान में रखना चाहिये कि कम से कम रूस में घर के मुपिया के बारे में यह प्रसिद्ध है कि वह घर की जवान औरतो के बारे में, गागकर अपनी बहुओं के बारे में अपनी हैमियत का वैजा फायदा उठाना है और घर को मक्मर हरम बना डालता है। स्सी लोक-गीतों में इम आपको स्पष्ट झलक मिलती है। मातृ-गत्ता के विनाश के बाद बहुत तेजी मे एकनिष्ठ विवाह का विकास हुपा। पर उगनी नई परने के पहले हम बहु-पत्नी प्रथा तथा यह गति भवम्या
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