व्यक्ति केवल उसी समय अपने कामों के लिये पूरी तरह जिम्मेदार माना जायेगा, जव इन कामो को करते समय उसे अपनी इच्छानुमार कार्य करने की पूरी स्वतंत्रता रही हो; और यह हर आदमी का नैतिक कर्तव्य है कि यदि कोई उस पर अनैतिक कार्य करने के लिये दवाव डालता है, तो वह उसका विरोध करे। परन्तु विवाह की पुरानी प्रथा से यह बात कैसे मेल खाती है ? पूंजीवादी विचारों के अनुसार विवाह भी एक करार होता है, कानूनी करार होता है, बल्कि कहना चाहिये कि सबसे महत्त्वपूर्ण करार होता है, क्योकि उसके द्वारा दो व्यक्तियो के तन और मन का जीवन भर के लिये फैसला कर दिया जाता है। इसमे कोई शक नहीं कि रस्मी तौर पर विवाह का करार दोनों पक्ष स्वेच्छा से करते थे। दोनों पक्षों की सहमति के विना विवाह का करार नहीं किया जाता था। परन्तु हम यह भी अच्छी तरह जानते है कि यह सहमति किस प्रकार ली जाती थी, और वास्तव मे विवाह कौन तय करता था। परन्तु यदि दूसरे सभी करारो का पूर्ण स्वतंत्रता के साथ निश्चय किया जाना आवश्यक है, तो फिर विवाह के करार के लिये यह क्यों आवश्यक नहीं है ? दो युवा व्यक्ति , जो युगल दम्पति बनाये जानेवाले है, क्या यह अधिकार नही रखते कि वे स्वतंत्रतापूर्वक अपने भाप का , अपने शरीर का , और अपनी इन्द्रियो का जिस प्रकार चाहे उस प्रकार उपयोग करे? क्या यह बात सच नहीं है कि यौन-प्रेम नाइटों के प्रेम-व्यापार के कारण प्रचलित हुआ था, और क्या नाइटों के विवाहेतर प्रेम के विपरीत इमका सही पूजीवादी रूप पति-पत्नी का प्रेम नहीं है? और यदि विवाहित लोगों का कर्तव्य है कि वे एक दूसरे से प्रेम करें, तो क्या प्रेमियों का यह कर्तव्य नहीं है कि वे केवल एक दूसरे से ही विवाह करे और किसी दूसरे से न करे? और क्या इन प्रेमियों का एक दूसरे से विवाह करने का अधिकार माता-पिता, मगे-सम्बन्धियों और विवाह तय करानेवाले अन्य परम्परागत दलाली के अधिकार से ऊंचा नहीं है ? स्वतंत्रतापूर्वक व्यक्तिगत रूप से जांच लेने का अधिकार, यदि धड़धड़ाता हुप्रा धर्म तथा गिरजाघर मे भी पहुंच गया है, तो वह पुरानी पीढ़ी के इम असहनीय दावे के सामने ही कैसे ठिटककर रह जा सकता है कि उसे नयी पीढ़ी के तन-मन, सम्पत्ति और सुख-दुग्न का फैमला करने का अधिकार है ? ऐसे यग में, जिसने पुराने मारे सामाजिक बंधनों को ढीला कर दिया था और सभी परम्परागत विचारों को नीव हिला दी थी, इन प्रश्नों का १०१
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