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पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/११८

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परीक्षा गुरु
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"आहा! वहां की शोभा का क्या पूछना है? आम के मौर की सुगंधी सब अमरैयें महक रही हैं. उनकी लहलही लताओं पर बैठकर कोयल कुहुकती रहती है. घनघोर वृक्षों की घटा सी छटा देखकर मोर नाचा करते हैं. नीचे झरना झरता है ऊपर बेल और लताओं के मिलने से तरह-तरह की रमणीक कुंजें और लता मंडप बन गये हैं. रंग-रंग के फूलों की बहार जुदी ही मन को लुभाती है. फूलों पर मदमाते भौरों की गुंजार और भी आनंद बढ़ाती है. शीतल मंद सुगन्धित हवा से मन अपने आप खिला जाता है. निर्मल सरोवरों के बीच बारहदरी में बैठकर चद्दर और फुहारों की शोभा देखने से जी कैसा हरा हो जाता है? वृद्ध की गहरी छाया में पत्थर के चट्टानों पर बैठकर यह बहार देखने से कैसा आनंद आता है?” पंडित पुरुषोत्तमदास ने कहा.

“पहाड़ की ऊंची चोटियों पर जाने से कुछ और विशेष चमत्कार दिखाई देता है जब वहां से नीचे की तरफ़ देखते हैं कहीं बर्फ, कहीं पत्थर की चट्टानें, कहीं बड़ी-बड़ी कंदराएँ, कहीं पानी बहनें के घाटों में कोसों तक वृक्षों की लंगतार, कहीं सूअर, रीछ और हिरनों के झुंड, कहीं ज़ोर से पानी का टकराकर छींट-छींट हो जाना और उन्हें सर्य की किरणों के पड़ने से रंग-रंग के प्रतिबिंबों का दिखाई देना, कहीं बादलों का पहाड़ से टकराकर अपने आप बरस जाना, बरसा की झड़ अपने आस पास बादलों का झूम-झूम कर घिर आना अति मनोहर दिखाई देता है” मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.

“कुतब में ये बहार नहीं हो तो भी वो अपनी दिल्लगी के लिये बहुत अच्छी जगह है” मुन्शी चुन्नीलाल बोले.