कहा--अभी तो यहीं बैठे चिलम पी रहे थे। हम लोग तमाखू देने लगे, तो नहीं ली, अपने पास से तमाखू निकालकर भरी। यहाँ तो भगत की चारों ओर तलाश होने लगी, और भगत लपका हुआ घर चला जा रहा था कि बुढ़िया के उठने से पहले घर पहुँच जाऊँ !
जब मेहमान लोग चले गये, तो डाक्टर साहब ने नारायणी से कहा--बुड्ढा न-जाने कहाँ चला गया। एक चिलम तमाखू का भी रवादार न हुआ ?
नारायणी--मैंने तो सोचा था, इसे कोई बड़ी रकम दूंँगी।
चड्ढा--रात को तो मैंने नहीं पहचाना ; पर जरा साफ हो जाने पर पहचान गया। एक बार यह एक मरीज़ को लेकर आया था। मुझे अब याद आता है कि मैं खेलने जा रहा था और मरीज़ को देखने से इनकार कर दिया था। आज उस दिन की बात याद करके मुझे जितनी ग्लानि हो रही है, उसे प्रकट नहीं कर सकता। मैं उसे अब खोज निकालूँगा और उसके पैरों पर गिरकर अपना अपराध क्षमा कराऊँगा। वह कुछ लेगा नहीं, यह जानता हूँ। उसका जन्म यश की वर्षा करने ही के लिये हुआ है। उसकी सज्जनता ने मुझे ऐसा आदर्श दिखा दिया है, जो अबसे जीवन-पर्यन्त मेरे सामने रहेगा।