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मन्त्र


मेरे हृदय में भक्ति और श्रद्धा का सञ्चार होता। मैं यही समझता कि यह मेरे पूज्य हैं, और सरदार साहब का भी व्यवहार मेरे साथ स्नेह-युक्त और मित्रता-पूर्ण था।

मुझे अपने माता-पिता का पता नहीं है, और न उनकी कोई स्मृति ही है। कभी-कभी जब मैं इस प्रश्न पर विचार करने बैठता हूँ, तो कुछ धुँधले-से दृश्य दिखाई देते हैं--बड़े-बड़े पहाड़ों के बीच में रहता हुआ एक परिवार, और एक स्त्री का मुख, जो शायद मेरी माँ का होगा। पहाड़ों के‌ बीच में तो मेरा पालन-पोषण ही हुआ है। पेशावर से ८० मील पूर्व एक ग्राम है, जिसका नाम 'कुलाहा' है, वहीं पर‌ एक सरकारी अनाथालय है। इसी में मैं पाला गया। यहाँ से निकलकर सीधा फ़ौज में चला गया। हिमालय के जलवायु से मेरा शरीर बना है, और मैं वैसा ही दीर्घाकृति और बर्बर हूँ, जैसे कि सीमाप्रान्त के रहनेवाले अफीदी, ग़िलज़ई, महसूदी आदि पहाड़ी कबीलों के लोग होते हैं। यदि उनके और मेरे जीवन में कुछ अन्तर है, तो वह सभ्यता का। मैं थोड़ा-बहुत पढ़-लिख लेता हूँ, बात-चीत कर लेता हूँ,

अदब-क़ायदा जानता हूँ। छोटे-बड़े का लिहाज़ कर सकता हूँ ; किन्तु मेरी आकृति वैसी ही है, जैसी कि किसी भी सरहदी पुरुष की हो सकती है।

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