पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/१२५

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फ़ातिहा

तूरया आकर मुझे देखने लगी। मैं भी उसकी ओर देखने लगा।

तूरया ने पूछा--क़ैदी, घर में तुम्हारे कौन-कौन हैं ?

मैंने बड़े ही कातर स्वर में कहा--दो छोटे-छोटे बालक, और कोई नहीं ?

मुझे मालूम था कि अफ्रीदी बच्चों को बहुत प्यार करते हैं।

तूरया ने पूछा--उनकी माँ नहीं है ?

मैंने केवल दया उपजाने के लिये कहा--नहीं,उनकी माँ मर गई है। वे अकेले हैं। मालूम नहीं जीते हैं या मर गए; क्योंकि मेरे सिवाय उनकी देख-रेख करनेवाला और कोई न था।

कहते-कहते मेरी आँखों में आँसू भर आए। तूरया की भी आँखें सूखी न रहीं। तूरया ने अपना आवेग सँभालते हुए कहा--तो तुम्हारे कोई नहीं है, बच्चे अकेले हैं। वे बहुत रोते होंगे।

मैंने मन-ही-मन प्रसन्न होते हुए कहा--हाँ, रोते ज़रूर होंगे। कौन जानता है, शायद मर भी गये हों ?

तूरया ने बात काटकर कहा--नहीं, अभी मरे न होंगे। अच्छा तुम रहते कहाँ हो ? मैं जाकर पता लगा आऊँगी।

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