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पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/१२७

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फ़ातिहा


आसकती है। अपनी जान के लिये तुमको मुसीबत में न डालूँगा।

तूरया ने कहा--मेरे लिए तुम चिन्ता न करो। मेरे ऊपर कोई शक न करेगा। मैं सरदार की लड़की हूँ, जो कहूँगी वही सब मान लेंगे; लेकिन क्या तुम जाकर रुपया भेज दोगे ?

मैंने प्रसन्न होकर कहा--हाँ तूरया, मैं रुपया भेज दूंँगा ?

तूरया ने जाते हुए कहा--तो मैं भी तुम्हें छुटकारा दिला दूंँगी।

इस घटना के बाद तूरया सदैव मेरे बच्चों के सम्बन्ध में बातें करती। असदखाँ, सचमुच इन अफ्रीदियों को बच्चे बहुत प्यारे होते हैं। विधाता ने यदि उन्हें बर्बर हिंसक पशु बनाया है, तो मनुष्योचित्त प्रकृति से वंचित भी नहीं रक्खा है। आखिर जुमेरात आई और अभी तक सरदार वापस न आया। न कोई उस गिरोह का आदमी ही वापस आया। उस दिन संध्या-समय तूरया ने आकर कहा--क़ैदी,अब मैं नहीं जा सकती; क्योंकि मेरा पिता अभी तक नहीं आया। यदि कल भी न आया, तो मैं तुम्हें रात को छोड़ दूंँगी। तुम अपने बच्चों के पास जाना; लेकिन देखो, रुपया भेजना न भूलना। मैं तुम पर विश्वास करती हूँ।

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