पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/१३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
फ़ातिहा

यही नहीं, तूरया का मोह अब भी मेरे ऊपर है। मेरे बच्चों को हमेशा वह कोई-न-कोई बहुमूल्य चीज दे जाती है। जिस दिन बच्चे उसे नहीं मिलते, दरवाज़े के भीतर फेंक जाती है। उनमें एक काग़ज़ का टुकड़ा बँधा होता है, जिसमें लिखा रहता है--सरदार साहब के बच्चों के लिए।

मैं अभी तक इस स्त्री को नहीं समझ पाया। जितना ही समझने का यत्न करता हूँ, उतनी ही यह कठिन होती जाती है। नहीं समझ में आता है कि यह मानवी है या राक्षसी !

इसी समय सरदार साहब के लड़के ने आकर कहा--देखिये, वही औरत यह सोने का ताबीज़ दे गई है।

सरदार साहब ने मेरी ओर देखकर कहा--देखा, असदखाँ, मैं तुमसे कहता न था। देखो, आज भी यह ताबीज़ दे गई। न मालूम, कितने ही ताबीज़ और कितनी ही दूसरी चीज़ें, अर्जुन और निहाल को दे गई होगी। कहता हूँ कि तूरया बड़ी ही विचित्र स्त्री है।

सरदार साहब से विदा होकर मैं घर चला। चौरस्ते से बुड्ढे की लाश हटा दी गई थी ; पर वहाँ पहुँचकर मेरे रोएँ

१२४