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पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/१८

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कप्तान साहब


कड़वी बातें सुनाने लगा। बेचारे जगत को निकलना मुश्किल हो गया। रात-दिन ताक-झाँक में रहता, पर घात न मिलती थी। आख़िर एक दिन बिल्ली के भागों छींका टूटा। भक्तसिंह दोपहर को डाकख़ाने से चले, तो एक बीमा रजिस्ट्री जेब में डाल ली। कौन जाने कोई हरकारा या डाकिया शरारत कर जाय; किन्तु घर आये तो लिफ़ाफे को अच-कन की जेब से निकालने की सुधि न रही। जगतसिंह तो ताक लगाए हुए था ही। पैसों के लोभ से जेब टटोली तो लिफ़ाफ़ा मिल गया। उस पर कई आने के टिकट लगे थे। वह कई बार टिकट चुराकर आधे दामों पर बेच चुका था। चट लिफ़ाफ़ा उड़ा लिया। यदि उसे मालूम होता कि उसमें नोट हैं, तो कदाचित् वह न छूता। लेकिन जब उसने लिफ़ाफ़ा फाड़ डाला और उसमें से नोट निकल पड़े, तो वह बड़े संकट में पड़ गया। वह फटा हुआ लिफ़ाफ़ा गला फाड़ फाड़कर उसके दुष्कृत्य को धिक्कारने लगा। उसकी दशा उस शिकारी की-सी हो गई जो चिड़ियों का शिकार करने जाय और अनजान में किसी आदमी पर निशाना मार दे। उसके मन में पश्चात्ताप था, लज्जा थी, दुःख था, पर उस भूल का दंड सहने की शक्ति न थी। उसने नोट लिफ़ाफे में रख दिये और बाहर चला गया।