पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/३३

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फ्तर का बाबू एक वेज़बान जीव है। मजदूर को आँखें दिखाओ, तो वह त्योरियाँ बदलकर खड़ा हो जावेगा। कुली को एक डाँट बताओ, तो सिर से बोझ फेंककर अपनी राह लेगा। किसी भिखारी को दुतकारो, तो वह तुम्हारी ओर गुस्से की निगाह से देखकर चला जायगा। यहाँ तक कि गधा भी कभी-कभी तकलीफ़ पाकर दो-लत्तियाँ झाड़ने लगता है। मगर बेचारे दफ्तर के बाबू को आप चाहे आँखें दिखायें, डाँट बतायें, दुतकारें या ठोकरें मारें, उसके माथे पर बल न आवेगा। उसे अपने विचारों पर जो

आधिपत्य होता है, वह शायद किसी संयमी साधु में भी न

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