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स्तीफ़ा
चपरासी ने बरामदे की सीढ़ी पर खड़े-खड़े कहा--हुज़र ! जब वह आवें तब तो, मैं तो दौड़ा चला आ रहा हूँ।
साहब ने पैर पटक कर कहा--बाबू क्या बोला ?
चपरासी--आ रहे हैं हुज़र, घंटा-भर में तो घर में से निकले।
इतने में फ़तहचंद अहाते के तार के अंदर से निकलकर वहाँ आ पहुँचे और साहब को सिर झुकाकर सलाम किया।
साहब ने कड़ककर कहा--अब तक कहाँ था ?
फ़तहचंद ने साहब का तमतमाता चेहरा देखा, तो उनका खून सूख गया। बोले--हुज़र ! अभी-अभी तो दफ्तर से गया हूँ, ज्योंही चपरासी ने आवाज़ दी, हाज़िर हुआ।
साहब--झूठ बोलता है, झूठ बोलता है, हम घंटे-भर से खड़ा है।
फ़तहचंद--हुजूर, मैं झूठ नहीं बोलता। आने में जितनी देर हो गई हो, मगर घर से चलने में मुझे बिल्कुल देर नहीं हुई।
साहब ने हाथ की छड़ी घुमाकर कहा--चुप रह, सुअर, हम घंटा-भर से खड़ा है, अपना कान पकड़ो !
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