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पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/५१

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स्तीफा


पहले मेरे कान पकड़े थे और मुझे सैकड़ों ऊल-जलूल बातें कहीं थीं। क्या इतनी जल्दी भूल गये ?

साहब--मैंने आपका कान पकड़ा, आ-हा-हा-हा-हा ! मैंने आपका कान पकड़ा--आ-हा-हा-हा ! क्या मज़ाक है ? क्या मैं पागल हूँ या दीवाना ?

फ़तहचंद--तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ ? चपरासी गवाह है। आपके नौकर-चाकर भी देख रहे थे।

साहब--कब का बात है ?

फ़तहचंद--अभी-अभी कोई आध घंटा हुआ, आपने मुझे बुलाया था और बिना कारण मेरे कान पकड़े और धक्के दिये थे।

साहब--ओ बाबूजी, उस वक्त हम नशा में था। बहरा ने हमको बहुत दे दिया था। हमको कुछ ख़बर नहीं, क्या हुआ माई गाड, हमको कुछ खबर नहीं।

फ़तहचंद--नशा में अगर तुमने मुझे गोली मार दी होती, तो क्या मैं मर न जाता ? अगर तुम्हें नशा था और नशा में सब कुछ मुआफ़ है, तो मैं भी नशा में हूँ। सुनो मेरा फैसला, या तो अपने कान पकड़ो कि फिर कभी किसी भले आदमी के संग ऐसा बर्ताव न करोगे ; या मैं आकर तुम्हारे कान पकडूंगा। समझ गये कि नहीं ?

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