पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
स्तीफ़ा


जान था, खून का बदला खून ; इस नियम में कोई अपवाद न था। यही उनका धर्म था, यही ईमान। मगर उस भीषण रक्त-पात में भी हिन्दू-परिवार शान्ति से जीवन व्यतीत करते थे। पर एक महीने से देश की हालत बदल गई है। एक मुल्ला ने न-जाने कहाँ से आकर अनपढ़ धर्म-शून्य पठानों में धर्म का भाव जागृत कर दिया है। उसकी वाणी में कोई ऐसी मोहिनी है कि बूढ़े, जवान, स्त्री-पुरुष खिँचे चले आते हैं। वह शेरों की तरह गरजकर कहता है--'खुदा ने तुम्हें इसलिए पैदा किया है कि दुनिया को इस्लाम की रोशनी से रोशन कर दो, दुनिया से कुफ्र का निशान मिटा दो। एक काफ़िर के दिल को इस्लाम के उजाले से रोशन कर देने का सवाब सारी उम्र के रोज़े, नमाज़ और ज़कात से कहीं ज्यादा है, जन्नत की हूरें तुम्हारी बलाएँ लेंगी और फ़रिश्ते तुम्हारे कदमों की खाक माथे पर मलेंगे, खुदा ख़ुद तुम्हारी पेशानी पर बोसे देगा।' और सारी जनता यह आवाज़ सुनकर मजहब के नारों से मतवाली हो जाती है। इसी धार्मिक उत्तेजना ने कुफ्र और इस्लाम का भेद उत्पन्न कर दिया है। प्रत्येक पठान जन्नत का सुख भोगने के लिए अधीर हो उठा है। उन्हीं हिन्दुओं पर जो सदियों से शान्ति के साथ रहते थे, हमले होने

४६