बूढ़े ने हाथ जोड़कर कहा--हजूर बड़ा गरीब आदमी हूँ। मेरा लड़का कई दिन से.....
डाक्टर साहब ने सिगार जलाकर कहा--कल सबेरे आओ, कल सबेरे ; हम इस वक्त मरीजों को नहीं देखते ।
बूढ़े ने घुटने टेककर जमीन पर सिर रख दिया और बोला--दुहाई है सरकार की, लड़का मर जायगा। हजूर, चार दिन से आँखें नहीं......
डाक्टर चड्ढा ने कलाई पर नजर डाली। केवल १० मिनट समय और बाकी था। गोल्फ-स्टिक खूँटी से उतारते हुए बोले--कल सबेरे आओ, कल सबेरे ; यह हमारे खेलने का समय है।
बूढ़े ने पगड़ी उतारकर चौखट पर रख दी और रोकर बोला--हजूर एक निगाह देख लें। बस एक निगाह ! लड़का हाथ से चला जायगा हजूर, सात लड़कों में यही एक बच रहा है हजूर, हम दोनों आदमी रो-रोकर मर जायँगे, सरकार, आपकी बढ़ती होय, दीनबन्धु।
ऐसे उजड्ड देहाती यहाँ प्रायः रोज ही आया करते थे। डाक्टर साहब उनके स्वभाव से खूब परिचित थे। कोई कितना ही कुछ कहे ; पर वे अपनी ही रट लगाते जायेंगे। किसी की सुनेंगे नहीं। धीरे से चिक उठाई और बाहर