पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/९२

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मन्त्र

'जाकर झगडू साह से दस सेर सन उधार लाऊँगा।'

'उसके पहले के पैसे तो दिये ही नहीं, और उधार कैसे देगा ?'

'न देगा न सही। घास तो कहीं नहीं गई है। दोपहर तक क्या दो आने की भी न काटूँगा ?'

इतने में एक आदमी ने द्वार पर आवाज़ दी--भगत, भगत, क्या सो गये ? ज़रा किवाड़ खोलो।

भगत ने उठकर किवाड़ खोल दिये। एक आदमी ने अन्दर आकर कहा--कुछ सुना, डाक्टर चड्ढा बाबू के लड़के को साँप ने काट लिया।

भगत ने चौंककर कहा--चड्ढा बाबू के लड़के को ! वही चड्ढा बाबू हैं न, जो छावनी में बंगले में रहते हैं ?

'हाँ हाँ वही। शहर में हल्ला मचा हुआ है। जाते हो तो जाओ, आदमी बन जाओगे ?'

बूढ़े ने कठोर भाव से सिर हिलाकर कहा--मैं नहीं जाता। मेरी बला जाय। वही चड्ढा हैं। खूब जानता हूँ। भैया को लेकर उन्हीं के पास गया था। खेलने जा रहे थे। पैरों पर गिर पड़ा कि एक नजर देख लीजिए ; मगर सीधे मुँह बात तक न की। भगवान बैठे सुन रहे थे। अब जान पड़ेगा कि बेटे का ग़म कैसा होता है। कई लड़के हैं ?

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