पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/१८

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. कल माँ ओर पिताजी के साथ एक नाटक देखने गया था। उसमें जनाना ढंग के आदमी का रोल था। उसका औरतों जैसा बोलना, चलना। हम तो हँसते हँसते लोटपोट हो गए। फिरसे एक बार यह नाटक देखना चाहिए। अब मुझे शरम आती है की, वह नाटक मुझे अच्छा लगा था। इस तरह से उडाया गया मजाक हर रोज मेरे आसपास देखने सुनने में आता है। दूसरों की खिल्ली उड़ाना हमारा टाईम पास है। मराठी, हिंदी के कई नाटक, सिनेमा, टीवी सीरीयल्स के कई व्यंग्य जनाना ढंग के पुरुषों पर कसे हुए होते हैं। तो यह है हमारा विनोद-बुद्धि का स्तरा यह है हमारी संवेदनशीलता। व्हेकेशन बॅच खत्म हो गई। छुट्टि के दिन कैसे बिते, पता भी नहीं चला। हम लोग तुलजापुर, पंढरपुर होकर आए। अब दसवीं का वर्ष। उससे निपटना है बस। कल से स्कूल शुरू। आज रात मैं सो नहीं सकूँगा। स्कूल खुलने के खयाल सेही मेरा दिल दहल जाता है। आज नहीं, हर साल मेरे यही हाल होते है। आँखे खुली की खुली रखके कितनी देर तक मैं बैठा रहता हूँ, ताकी निंद न लग जाए। इसमें जतीन से मिलने का आनंद भी खट्टा हो जाता है। आज स्कूल खुला। मेरी बैठने की जगह बदल दी गई है। अब मैं जतीन के अगले बेंच पर बैलूंगा। इतने दिनों बाद उसे जी भर के देखा। कितनी खुशी हुई, बता नहीं सकता। गणित का सर एकदम निकम्मा है। बडे बॉल्सवाली लड़कियों के गालों को किसी न किसी बहाने छूता है। कापी देखने के बहाने उनके नजदीक जाता है और उनके बालों में हाथ फेरता है। गणित गलत आने पर उन्हें मारता भी है, चुटकियाँ काटता हैं। मुझे उससे भय लगता है। उसकी आँखों से मैं आखें मिला नहीं पाता। आज मेरा एक गणित गलत आया, तो उसने मुझे मारा। मैं रो पड़ा। आजकल लड़कियाँ भी रोती नहीं लेकिन मुझसे रोका नहीं गया। शरम आती है। अब दोस्त मेरी हँसी उड़ाते है। किरोसीन छिड़ककर उस टिचर को जला देना चाहता हूँ मैं। .