पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१२

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चतुरसेन की कहानियाँ मालिश करनेवालों से बदन में तेल मालिश कराना, दूधिया और फेर किसी साफ-सुथरे धाट पर, और कभी-कभी बीच धार ही में गंगा की गोद में चपल बालक की भांति जल क्रीड़ा करना, फिर गंगा की लहरों पर हस की भाँनि तैरती हुई किश्ती की छत पर बैठकर कचौरीगली के म करियाँ और रसगुल्ले उड़ाना, रस-भरे सुवासिर मपई पानों के दोने पर दोन खाली करना, मन में कित बेफिक्री, ताजगी और मस्ती भर देता है। रात के बनारम को मलाई और पान की गिलौरियाँ वह लुत्फ देती। जिसकी कल्पना भी दिल्ली के कचालू के पत्ते चाटने वाले न छल कूद कर का सकते। त्या मित्र-मर डली भी काफी जुट गई है, यद्यपि मित्रों में नवं नेकनाम लीडर हैं, न नामी-गरामी वकील, न कोई गईस. कुछ नौजवा न दोस्त हैं, लोग उन्हें गुण्डा कह कर बदना करते हैं, पर मुझे उनकी सोहबत चन्द्रोदय मकरध्वज, प्राश और मदनमंजरी बटी से भी ज्यादा ताकत देने वा सावित हुई है। मेरे ये बेफ़िके दोस्त जब मेरी जेब के पैसों, दूधिया छान , कचौरियाँ हजम कर, मलाई चाट कर, पान कक कैपस्टना के सुगन्धित धुएँ का बबण्डर मेरे चारों उद्देलते हुए, हर तरह मुझे खुश करने और हँसाने के जोड़- में लगे रहह हैं, तब मैं हरगिज अपने को काने लार्ड वाचेल से नहीं समझता । और इन दोस्तों की बदौलत एक हफ्ते ही मस्ती और ताजगी दिमारा और शरीर में भी जाता है, जो मैंकड़ों रुपयों की वाइयाँ खाने पर भी । इस कदर मुगार सन्नः।