पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१२४

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चतुरसेन की कहानियाँ कहा-जरूर यह औरत बदमाशों के अड्डे में कैद है। ठहरो, पहले यह देखना है कि यह मकान है किसका। कॉन्स्टेरिल ने तुरन्त ही पता लगा लिया और उन आदमिय से कहा--तुम लोग यहीं रहो, मैं थाने से मदद लेकर आता हूँ, मकान पर धावा बोलना पड़ेगा। थोड़ी ही देर में दो कॉन्स्टेविलों को लेकर पुलिसइन्स्पेक्टर' आ गया, और सब लोग श्राश्नम के द्वार पर जा धमके। द्वार पर धक्के देने पर एक श्रादमी ने द्वार खोला ! पुलिस को देख कर वह ववरा कर बोला-"आप क्या चाहते हैं ?" 'मैनेजर साहब कहाँ है ?" डॉक्टर जी हैं, वे भीतर हैं" "उन्हें जरा बुलाओ !" चपरासी भीतर गया । सुनकर डॉक्टर साहब की फूंक निकल गई ! वे वाहर आए और बिलैया-डण्डौत करते हुए कोई वारदात नहीं है। "मगर मैं मकान की तलाशी लेना चाहता हूँ।" 'आप ऐसा नहीं करने पायेंगे।" इन्स्पेक्टर ने डॉक्टर को पीछे ठेल दिया और वे घर में धुस गए। वे सीधे उसी कमरे में पहुँचे। बाहर ताला बन्द था ! उन्होंने कहा-इसमें कौन है ? "इसमें एक बाबू साहब का सामान बन्द है।" 'वे कहाँ है ?" "बाहर गए हैं" "इसकी ताली कहाँ है ?"