पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१३०

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1 चतुरसेन की कहानियाँ हुआ था, वह आदमी मुझे पसन्द था; पर ये लोग जबर्दस्तो ले आए। मैंने अपने गहने, कपड़े, स्पए माँगे और पति के पास जाना चाहा तो इन्होंने मुझे मारा और बन्द कर दिया। ६ दिन से मैं बन्द हूँ ! गजपति रोज रात को मेरा धर्म नष्ट करता है, उससे मेरी पार नहीं बसाती ।" मैजिस्ट्रेट ने पूछा-तुम्हारे गहने, कपड़े, रुपए कहाँ हैं ? चम्पा हजूर इन्हीं के पास हैं। मै जस्ट्रेट-डाक्टर को मालूम है ? चम्पा-हुजूर उसी के हुक्म से वे छीने गए हैं। मैजिस्ट्रेट-अच्छा हटाओ, तीसरी को बुलाओ। तोसरी ने आकर बयान दिया:- "मेरा नाम गोमती है । प्राथु पच्चीस वर्ष, जात वैश्य, रहन्ले बाली जिला अलीगढ़ की हूँ। मेरे पति हैं, ससुर हैं और परिवार के लोग हैं। मैं राजघाद स्नान करने आई थी, वहाँ साथ बालियों से भटक गई । यह गजपति मुझे माता-माता कहकर साथ ले प्राया। कहा-हम स्वयं सेवक हैं। चलो घर पहुँचा दें। इसके साथ दो औरतें और थीं। कहा- इन्हें पहुँचा कर तब तुम्हें पहुँचाएंगे। मैं क्या करती, चुप हो रही। यह मुझे दिल्ली ले श्रआया । यहाँ रख दिया। यहाँ का हाल देख-देख कर मैं रोती और तकदीर को ठोकती थी। पर डाक्टर ने कहा-'देखो, हमने तुम्हारे पति को तार दिया था कि इसे ले जाओ, आया है कि वह अब हमारे काम की नहीं रही। कहो, अब क्या कहती हो। मैं खूब रोई और मरने पर तैयार हो गई। सब इन्होंने धीरज दिया और एक महीने बाद मुझे मजबूर तो जवाब