चतुरसेन की कहानियाँ कढ़ा दिया और बह जल पर बन्दर की भाँति चड़ गया-जा- कर ऋचहरी पर तिरंगा फहरा दिया ! पूछिए मटरू से, वहीं तो बड़ा बालियां पीट रहा था ?' स्टर ने कहाकहना तो हूँ, इन्हीं आँखों से यह सब काम मन देखा था. जिसके विवरण सोने की कलम से भारत की आजादी के इतिहास में लिखे जाएंगे। पोर नाबालिग ने एक वीड़ी निकालो। मैंने झटपट मिारेट पेश करके कहा-सिगरेट पिजिए और सुनाइए इसके आइक्या हुआ ? उसके बाद लाटी-चा हुआ। कांग्रेस के लोडरों ने कहा-'सागना कोई मत, जम कर लेट जाओ और लाठियाँ ग्वाओ!" "तो आप भी लेट गए ?" "जी नहीं, मैं उन देवकूफों में नहीं हूँ जो बैठे-बैठे पिटते हैं। मेग काम खत्म हो चुका था : लाठी चली तो मैं वहाँ से भागा । फिर भी पीठ पर दो पड़ ही गई। यह देखिए निशान, यह कोहनी भी इसी दिन द गई । धार लोग खिलखिला कर हँस पड़े। परन्तु मैंने दोनों हाथों में उनकी कोहनी दबा कर कहा-खैरियत हुई दोस्त, ज्यादा चोट नहीं लगी ! आपने अच्छा किया, भाग आए। मटरू ने कहा-अब घोड़े की लात की बात कहो। पीर नाबालिग ने सहज शान्त स्वर में कहा-लात को क्या बात कहना है ! सामने एक तबेला था, मैं झपट कर उसी में धुस गया ! उसमें एक घोड़ा बँधा था, मैं उसी पर जा गिरा! उसने भी दो लातें कस दी, वस इतनी ही तो बात है। 1
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