जेन्टिलमैन विभूति-रूप होगा। जो कोई उसका दर्शन करेगा या जिसका उससे सम्बन्ध होगा, उसका महा-कल्याण हो जायगा। २ दिल्ली स्टेशन के ईश्वरदास के हिन्दू रेस्टोरों में एक जेन्टलमैन बैठे मुंह से धुंआ उगल रहे थे। इनके आगे ब्रान्डी का गिलास और बर्फ, सोडा आदि सामान धरा था। जेन्टलमैन महाशय छत्त पर सरसराते पन्ने पर नजर जमाए धुंआ फेंक कर मानों पन्ने पर जादू मा कर रहे थे। थोड़ी देर बाद तीन व्यक्तियों ने रैस्टोरों में प्रवेश किया। जेन्टलमैन ने कुर्सीसे उठकर उनमें से एक व्यक्ति की ओर हाथ बढ़ा कर कहा:--हलो मिस्टर दास हियर यू आर । दास ने हाथ मिलाते हुए मुस्कराकर अपने मित्रों का परिचय देते हुए कहा- "आप मेरे परम मित्र सेठ लक्ष्मीदास राजोडिया, मेरे पुराने सहपाठी डा० सिन्हा साहेब !" जेन्टलमैन ने बारी-बारी से दोनों से हाथ मिला कर कहा- आप साहबान से मिलकर अजहद खुशी हुई, बैठिए ।' सबके बैठने पर जेन्टलमैन ने बैरा से संकेत किया। आननफा- मन चाय केक-टोस्ट-अण्डा और न जाने क्या-क्या अगलम् बग़लम् टेबिल पर चुन दिया गया । तीनों दोस्त हाथ साफ करने लगे। सिर्फ सेठ जी कोरे रह गए, बहुत आग्रह करने पर भी उन्होंने किसी वस्तु को नहीं छुआ। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। मिस्टर दास ने कहा, 'मेरे परम मित्र सेठ साहेब को इधर शेअर और रई में बहुत और आप