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पुरातत्व-प्रसङ्ग


को देख कर एक कवि ने कहा है—

न यत्र स्थेमानं दधुरतिभयभ्रान्तनयना
गलद्दानोद्रेकभ्रमदलिकदम्बाः करटिनः।
लुठन्मुक्ताभारे भवति परलोकं गतवतो
हरेरद्य द्वारे शिव शिव शिवानां कलकलः॥

[जुलाई १९२७