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पुरातत्व-प्रसङ्ग


बौद्ध श्रमण चीन से भारत और जो भारत से चीन जाते थे वे इन्हीं मठों और विहारों में ठहरते हुए जाते थे। इन लोगों के काफिले के का़फिले चलते थे। चीनी परिब्राजक ह्वेनसांग और इत्सिग आदि इसी मार्ग से भारत आये थे। उनके यात्रा-वर्णनों में इस मार्ग मे पड़ने वाले नगरों, नदियो पर्वतों, रेगिस्तानों आदि का बहुत कुछ उल्लेख पाया जाता है।

कालान्तर में बर्बर मुसलमानों का जोर बढ़ने पर उन्होंने चीन और भारत के बीच के इस राजमार्ग को धीरे धीरे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। मठों, स्तूपों और बिहारो को उजाड़ दिया; हजारों बौद्ध-श्रमणों को तलवार के घाट उतार दिया; नगरो को तहस-नहस करके उन्हे ज़मीदोज़ कर दिया। ये सभी स्थान बालू के टीलो में परिणत हो गये। तूफ़ानों के कारण उड़ी हुई बालू ने इन सबको अपने नीचे यहाँ तक दबा दिया कि उनका नामो-निशान तक न रहा।

अपने ऊपर आई हुई या आनेवाली विपत्ति से अपनी प्राण-रक्षा असम्भव समझ कर बौद्ध विद्वान् प्राणदान देने के लिए तैयार हो गये। परन्तु उन्होंने अपने एकत्र किये हुए ग्रन्थ और चित्रादि के समुदाय को अपने प्राणों से भी अधिक समझा। अतएव कही कहीं उन्होंने उस समुदाय को पर्व्वतों को गुफाओं के भीतर,