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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


कबरें तिनवल्ली जिले की भी हैं। इस पिछले कबरिस्तान की ठठरियों की खोपड़ियाँ तामील जाति के मनुष्यों से बिलकुल मिलती हैं । इससे क्या यह नहीं सूचित होता कि आर्यों की सभ्यता की छाप पड़ने के सैकड़ों वर्ष पहले भी द्रविड़-देश में रहनेवाले मनुष्य बहुत कुछ सभ्य थे? वे कपड़े पहनते थे, लोहे और ब्रांज़ के शस्त्रों का व्यवहार करते थे, यहाँ तक कि सुवर्ण-जात आभूषण भी रखते थे। कबरों में ऐसे छाते भी मिले हैं जिन पर सोने का काम है । गढ़े खोदकर मुर्दे दफन करना कुछ आर्यों का रवाज थोड़े ही है। मे तो अपने मुर्दे पहले भी जलाते थे और उनके वंशज अब भी जलाते हैं। उन्हें गाडना द्राविड़ों की निज की प्रणाली थी और यही प्रणाली इराके, अरब और एशिया माइनर के कितने ही प्राचीन स्थानों और उनके समीपवर्ती टापुओं में प्रचलित थी। द्रविड़ देश के निवासियों की पुरानी रीति-रस्में तो आर्यों से सम्पर्क होने के बहुत समय पीछे बदली हैं। भतएव मान लेना चाहिए कि द्राविड़ लोग आर्यों के भा आगमन के बहुत पहले ही से यहाँ रहते थे और अपनी निज की सभ्यता भी रखते थे । द्राविड़ों के सौभाग्य से, सुनीतिकुमार बाबू की इस कल्पना, अनुमिति या सिद्धान्त के पुष्टीकरण ही के लिए, कुछ भौर प्रमाण भी अभी हाल ही में मिले हैं।