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१.झंकार--श्री मैथिलीशरणजी गुप्त की अनुपम और
अभूतपूर्व गीति कविताओं का संग्रह। पृष्ठ संख्या १७४
२.अंकुर--श्री कृष्णानन्द गुप्त ने कहानी-लेखन- कला में बहुत ख्याति पाई है। यह पुस्तक उन्हीं की उनी हुई कहानियों का संग्रह है। पृष्ठ संख्या १५०
३.स्वप्न वासवदत्ता (नाटक)--कालिदास की शकुन्तला के बाद संस्कृत साहित्य में यदि किसो नाटक का नाम लिया जा सकता है तो वह महाकवि भास का स्वप्न वासवदत्ता नाटक है। श्री मैथिलीशरण जी गुप्त ने उसी का यह हिन्दी अनुवाद किया है। पृष्ट संख्या १२४
[महाकवि भास के अन्य सभी नाटक इसी माला में निकल रहे हैं ]