मिलने लगा। यह बन्दोबस्त चन्दरोज़ा समझा गया
और ९ वर्ष तक जारी रहा। इस बीच में कनिहाम
साहब ने पुरातत्त्व-विषयक ९ रिपोर्टें लिखकर प्रकाशित
की। इन रिपोर्टों का सम्बन्ध केवल उत्तरी भारत से है।
गवर्नमेन्ट का ख़याल था कि यह काम थोड़े ही समय में
समाप्त हो जायगा। पर कनिहाम साहब की रिपोर्टें देख
कर उसकी आँखें खुल गई। उसे मालूम हो गया कि
यह काम तो बड़े महत्व का है और शीघ्र समाप्त होने
वाला नहीं। तब, १८७२ ईसवी में, गवर्नमेन्ट ने सारे
भारत में पुरातत्त्व विषयक-खोज कराने का निश्चय किया
और कनिहाम साहब ही को डाइरेक्टर जनरल बनाया।
उनकी मदद के लिए उसने और विद्वानों को भी नियत
किया। अतएव डाक्टर बर्जेस को भी यही काम दिया
गया और १८७४ ईसवी में वे दक्षिणी भारत में खोज
करने लगे।
१८८० ईसवी तक पुरातत्व-विभाग प्राचीन खोज,
तो करता रहा, पर प्राचीन इमारतो की रक्षा का भार
प्रान्तिक गवर्नमेन्टो ही पर था। उन्होंने इस काम में बड़ी
शिथिलता की। परिणाम यह हुआ कि पुरानी इमारतें नष्ट
होने लगीं। तब उनकी रक्षा के लिए एक क्यूरेटर नियत
हुआ। उसने (मेजर कोल ने) १८८१ से १८८३
तक "प्रिज़र्वेशन आफ नेशनल मान्यूमेंट्स' नाम की