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पुरातत्व-प्रसङ्ग


व्यापार, धर्म-प्रचार, युद्ध या उपनिवेश-स्थापना आदि के लिए, जल-स्थल दोनो के द्वारा, नाना देशो में गमना- गमन करते थे; उनके पास जहाज़ थे; दुनिया का भौगोलिक वृत्तान्त भी वे बहुत कुछ जानते थे। वे सभ्य, साहसी, उदार, व्यापार-कुशल, शिल्पकलानिपुण, वीर और अध्यवसायशील थे। उस समय के प्रायः सभी सभ्य और अर्द्ध-सभ्य देशो से उनका सम्बन्ध था। वैदिक और लौकिक संस्कृत-भाषा के कितने ही ग्रन्थों में इस बात के अनेक प्रमाण पाये जाते हैं।

संसार में ऋग्वेद सबसे अधिक पुराना ग्रन्थ है। उसके भिन्न भिन्न ५ मन्त्रों से यह सिद्ध होता है कि प्राचीन आर्य्य, व्यापार आदि के लिए, समुद्र की राह,


*ऊपर जिन मन्त्रों का हवाला दिया गया है वे ये हैं--

(१) वेदा यो वीना यदमन्तारक्षेण पतताम्।

वेद नावः समुद्रियः (१-२५-७)

(२) उवासोषा उच्छाच्च भु देवी जीरा स्थानाम्।

ये अस्या आदरणेषु दघ्रिरे न श्रवस्य वः (१-४८-३)

(३) तं गूर्तयो नेमन्निषः परीणसः

समुद्रं न संचरणे सनिप्यवः

पति दक्षस्य विदमस्य नू सहो

गिरिं न वेना अधिरोह तेजसा। (१-५६-२)