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प्राचीन हिन्दुओं की समुद्र-यात्रा


अन्य देशों में बेचने के लिए यहाँ से जहाज़ों में लिये जा रहे थे।

काश्मीरक कवि सोमदेव के कथा-सरित्सागर में तो समुद्र-यात्रा और अन्य देशों में आने-जाने के सैकड़ों हवाले पाये जाते हैं। नवें लम्बक के पहले तरङ्ग में लिखा है कि पृथ्वीराज नामक राजा किसी चित्रकार के साथ एक जहाज से मुक्तिपुर-टापू को गया था। दूसरे तरङ्ग में लिखा है कि एक व्यापारी अपनी स्त्री के साथ किसी टापू को जा रहा था। राह में तूफान आजाने से जहाज़ टूट गया और दोनो का चिरवियोग होगया। चौथे तरङ्ग में समुद्र-सूर तथा एक अन्य व्यापारी का उल्लेख है जो सुवर्ण-द्वीप (सुमात्रा नाम के टापू) में व्यापार करने गये थे। छठे तरङ्ग में लिखा है कि चन्द्रस्वामी नाम का एक व्यापारी जहाज पर चढ़ कर लङ्का आदि कितने ही टापुओं में अपने पुत्र को खोजने गया था। हितोपदेश नामक पुस्तक में भी कन्दर्पकेतु नाम के एक व्यापारी का उल्लेख है जिसने समुद्र-यात्रा की थी। राजतरङ्गिणी में एक श्लोक है जिसमें लिखा है कि एक राजदूत को समुद्र में बड़ी ही भयङ्कर विपत्ति का सामना करना पड़ा था।


  • सन्धिविग्रहिकः सोऽथ गच्छन् पोतच्युतोऽम्बुधौ।

प्राप पारं तिमिग्रासात्तिमिमुत्पाट्य निर्गतः॥