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प्राचीन भारत में नाट्यशालायें


तत्त्व-विभाग इन्हें खोज खोज कर इनकी तालिका बना रहा है और कुछ को प्रकाशित भी कर रहा है; पर उनका अन्त नहीं मिलता। हर साल नये नये सैकड़ों ही प्राचीन लेख मिलते हैं। उनमें से कुछ की भाषा संस्कृत, कुछ की तामील, कुछ को तैलगू, कुछ की मल- याली है। कुछ अन्य भाषाओं में भी इस तरह के लेख मिलते हैं। दक्षिणी भारत के प्राचीन लेखों के सम्बन्ध में ३१ मार्च १९२५ तक की एक साल की जो रिपोर्ट अभी, कुछ समय पूर्व, निकली है उसमें ४२० शिला- लेखों और १९ ताम्रपत्रों का उल्लेख है। शिलालेखों में से एक लेख ऐसा है जिससे सूचित होता है कि प्राचीन भारत के कोई कोई नरेश गीत, वाघ और नाट्य-कला के बड़े ही प्रेमी थे। चोल-वंश का अधीश राजेन्द्र चोल अथवा राजराजदेव (प्रथम) ऐसा ही था। यह राजा राजकेसरी चम्मन के भी नाम से प्रसिद्ध था। यह ईसा की दसवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में विद्यमान था।

राजेन्द्र चोल (प्रथम) का एक शिलालेख मिला है। वह उसके राज्यारोहण के नवें वर्ष में उत्कीर्ण हुआ था। उस दिन शुक्ल पक्ष की षष्टी और दिन शनिवार था। हिसाब लगाने से उस दिन ९९४ ईसवी के आक्टोबर महीने की १३ तारीख थी। दक्षिण में एक जगह तिरूवाडु-