प्राचीन काल में भारतवासो विदेशों ही को नहीं,
द्वीपान्तरों तक को, जाते थे। यह बात अब काल्पनिक
नहीं, ऐतिहासिक है। इस विषय की अनेक पुस्तकें
प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके लेखक देशी पुरातत्त्वज्ञ भी
हैं और विदेशी भी। इस विषय में लिखे गये और
प्रकाशित हुए लेखों की तो संख्या ही नहीं निश्चित की
जा सकती। उन्हें तो सख्यातीत समझना चाहिए।
आरतवासियों के विदेश-गमन के विषय में आज तक जो
दुछ खोज हुई है और जो वुछ लिखा गया है उससे
सिद्ध है कि सन ईसपी से कितने ही शतक पहले से
भारत गसी दूर दूर देशों की यात्रा करने लगे थे। पश्चिम
में वे मित्र, रूम, यूनान, तुर्किस्तान तक जाते थे। पूर्व
में चीन, जापान, स्याम, अनाम, कम्बोडिया ही तक
नहीं, सुमात्रा, जावा, बोर्नियो और बाली आदि द्वीपों
तक भी उनका आवागमन था। उस समय समुद्र पार
करना मना न था। उससे धर्म्म की हानि न होती थी
और जानि-पाँति को धक्का न पहुँचता था। उस प्राचीन
काल में भारतवासी आर्य अथवा हिन्दु व्यापार के लिए
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