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कम्बोडिया में प्राचीन हिन्दू-राज्य


चायना के दक्षिणी और पूर्वी भाग धन-धान्य से बहुत अधिक सम्पन्न हैं। इसी से उन भागों को वे लोग "सुवर्ण-भूमि" कहते थे। जानेवालों में से कुछ तो वनिज-व्यापार करनेवाले थे, कुछ सैनिक थे और कुछ ब्राह्मण थे। पहले तो ये लोग रुपया पैदा करने ही के लिए जाते रहे होंगे और धीरे धीरे उनमें से बहुत लोग वहीं बस गये होंगे। उनकी संख्या बढ़ने पर धर्म्म प्रचार- और पौरोहित्य कार्य्य करनेवाले भी पीछे से जाने लगे होंगे। इस तरह का आवागमन सैकड़ों वर्षों तक जारी रहने पर वहाँ गये हुए भारतवासियों के उपनिवेश, विशेष विशेष जगहों में, हो गये होंगे। उस समय उन देशों में रहनेवाले लोग सभ्य और शिक्षित न थे। उन पर भारतवासियों के आचार-व्यवहार और धर्म्म आदि का प्रभाव पड़े बिना न रहा होगा। बहुत सम्भव है, सौ दो सौ वर्ष साथ साथ रहने पर, उन्होंने वहाँ वालों को अपने धर्म का अनुयायी बना लिया हो, असभ्यों को सभ्यता प्रदान को हो और उनमें से बहुतों को अपना दास, सेवक या कर्मचारी भी बना लिया हो। ईसवी सन् की तीसरी शताब्दी में पत्थरों पर खुदे हुए कई लेख इंडो-चायना में मिले हैं। वे सब विशुद्ध संस्कृत में हैं। इससे सूचित होता है कि उस समय यहाँ भारतवासियो का आधिपत्य दृढ़ता को पहुँच गया था। इससे यह भी