"आर्य्य देश" से काम्बोज को गया था। वहाँ उसने राजकुमारी यशोमती का पाणिग्रहण किया था। उसी का पुत्र
नरेन्द्रवर्मा वहाँ के राजसिंहासन का अधिकारी हुभा और
राज्य-सञ्चालन भी उसने किया। दसवीं शताब्दी में राजा
राजेन्द्र वर्म्मा की कुमारो इन्द्रलक्ष्मो का विवाह यमुना-तट
के निवासी दिवाकर नाम के विद्वान ब्राह्मण से हुभा था।
वासुदेव ब्राह्मण और जयेन्द्र-पण्डित के साथ भी काम्बोज
की राजकुमारियो का विवाह हुआ था।
काम्बोज में जन्म-मृत्यु आदि से सम्बन्ध रखनेवाले संस्कार हिन्दू-धर्मशास्त्रों के अनुसार होते थे। मृतप्राणी "शिवलोक" को प्राप्त होते थे। नये नरेशों के सिंहासनासीन होने पर अभिषेक का काम दिवाकर, योगीश्वर और वामशिव आदि नामधारी पण्डित कराते थे। राज- गुरुओं का बड़ा मान था। वे अपने शिष्य राजों को धर्म्मशास्त्र, नीति और व्याकरण आदि पढाते थे। काम्बोज-नरेश महाहोम, लक्षहोम, कोटिहोम, भुवनार्थ और शाखीत्सव आदि धामिक कृत्य करते थे।
ईसा के सातवे शतक तक बौद्धधर्म का प्रचार
काम्बोज में था। हॉ, वह अपने शुद्ध रूप में न रह गया
था। उसके अनुयायियों के आचार और धार्मिक व्यवहार
हिन्दुओं के आचार-व्यवहार से कुछ कुछ मिल गये थे। दोनों
का सम्मिश्रण सा हो गया था। शिव और विष्णु के मन्दिरों