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महात्मा अगस्त्य की महत्ता


भारत को भी पादानत करके वे आज डेढ़ सौ वर्ष से यहाँ राज्य कर रहे हैं। यदि वे कूपमण्डूकता के कायल होते तो न उनके प्रभुत्व और ऐश्वर्य की इतनी वृद्धि होती और न उनके राज्य की सीमा ही का विस्तार इतना बढ़ता। उनकी वर्तमान उन्नति और ऊर्जितावस्था का प्रधान कारण उनकी प्रगतिशीलता और अध्यवसाय ही है। जिस मनुष्य या जिस देश में महत्वाकाङ्क्षा नहीं वह कभी उन्नति नहीं कर सकता। इसे अबाध सत्य समझिए।

यद्यपि कुछ समय से इक्के दुक्के भारतवासी विद्यो-पार्जन और व्यापार के लिए इस देश के प्रायः प्रत्येक प्रान्त से अब विदेशों को जाने लगे हैं तथापि अधिकांश में समुद्र-पार करना यहाँवाले बहुत बड़ा पाप और धर्म-च्युति का कारण समझते हैं। जो राजपूत, किसी समय, जरूरत पड़ने पर, घोड़े की पीठ से भाले की नोंक से छेद कर नीचे आग में रोटियाँ पकाते और खाते थे वे तक इस समय योरप और अमेरिका आदि की यात्रा करने में धर्महानि समझते हैं। फ़ौज में भरती होकर अरब, मिस्र, फारिस, फ्रांस, इंगलैंड और हाँगकाँग जाने में हम लोगों की जाति और धर्म की हानि नहीं होती, पर अन्य उद्देश से जाने से हम डरते हैं। यह प्रवृत्ति धीरे धीरे कम हो रही है, पर उसके समूल जाते रहने में अभी बहुत समय दरकार है।