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पुरातत्त्व-प्रसङ्ग


लिए ५ मन्त्री रक्खे थे। उन्हीं की सलाह से वह राज्य- संचालन करता था। उसके मन्त्री और "भुजङ्ग" देश में दौरे भी करते थे। भुजङ्ग एक प्रकार के धर्म्माध्यक्ष अथया पुरोहित थे, वे राजकार्य भी करते और धर्म्म- सम्बन्धी व्यवस्था आदि भी देते थे। शैव और बौद्ध दोनों धर्मों के अध्यक्ष अलग अलग थे। राजाज्ञा का उल्लंघन करनेवालो को राजा के "जलधि-मन्त्री" दण्ड देते थे।

श्री राजसनागर की प्रधान महिषी का नाम पुम्ना- देवो था। वह रति का अवतार मानी जाती थी। राज- बानी माजापिहित बड़ा ही शोभाशाली नगर था। उसके इस यवद्वीपीय नाम का संस्कृत रूप बिल्वतिक्त अथवा तिक्तश्रीफल होता है। उसमे सुन्दर सरोवर, विशाल उद्यान, अभ्रकष प्रासाद, बड़े बड़े बाज़ार और मनोहर मन्त्रणागृह ( वितान ) थे। शैव ब्राह्मण एक तरफ़ रहते थे, बौद्ध दूसरी तरफ़। क्षत्रियों, राज-कर्मचारियों और मन्त्रियों के रहने के स्थान भी अलग, एक ओर, थे। सर्वसाधारण-जन, विशेष करके शैव थे। उच्चपदस्थ कर्म्म- चारी और मन्त्रिमण्डल तथा धनी मनुष्य प्रायः बौद्ध थे।

१३८९ ईसवी में हेमऊरुफ की मृत्यु हुई। इसके अनन्तर ही माजापिहित की अवनति का आरम्भ हो