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पृष्ठ:पुरातत्त्व प्रसंग.djvu/९१

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तक्षशिला की कुछ प्राचीन इमारतें

भारतवर्ष के शतशः नहीं, सहस्रशः कीर्तिस्तम्भ बलीकाल की कुक्षि में चले गये हैं। उनका अब कहीं पता नहीं। पुराने खँडहर खोदने से यदि कही उनका कोई भग्नांश निकल आता है तो पुराण-वस्तु-विज्ञानी उससे ग्रीस, फारिस, आसिरिया और बैबीलोनिया की बू निकालने लगते हैं। ऐसी कारीगरी उस समय ग्रीस ही में होती थी। अतएव भारतवासियों ने इसे उसी देश के कारीगरों से सीखा होगा। अथवा ऐसे मन्दिर था महल उस युग में फारिस या बाबुल ही में बनते थे। इस कारण, हो न हो, यह वही की नकल है। वे लोग इसी तरह के तर्कों की उद्भावनायें करने लगते हैं। पहले इस प्रकार के तर्कों का जोर कुछ अधिक था, पर अब कुछ कम हो गया है। अब भारतवर्ष की पुरानी सभ्यता, और पुराने कला-कौशल के चिन्ह अधिक मिलते जा रहे हैं। इस कारण पुरानी तकना की कुछ इमारतें गिरने नहीं तो हिलने ज़रूर लगी हैं। क्योकि इन चिन्हो से भारत की सभ्यता के बहुत पुराने होने के प्रमाण पाये जाते हैं। कुछ नये पुराविदों ने तो इस देश की सभ्यता की