पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२४७

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सोश्यल कान्फरेंश ] २२५ विषय में वक्तृता की जब कि नार्यसमाजी, जो वेद को भी मानते हैं और खाद्याखाद्य का भी विचार रखते हैं, वे ही समाज में पूर्णरूपेण आदरणीय नहीं हैं, मूर्ति पुराणादि के न मानने कारण दुरदुराये जाते हैं तो उपर्युक्त स्वामीजी तथा पंडिताजी की बातें किसी. को क्या रुच सकती थी। दूसरा कारण यह था कि चार रिजोल्यूशन पास हुए चारों में 'मारूं घुटना फूट आंख' का लेखा था । पहिला रिजोल्यूशन था कि १४ वर्ष की अवस्था तक दूल्हा दुलहिन का संग न होने पावे। यदि कोई इस नियम के विरुद्ध चले वह सर्कार से दंडित किया जावे । हम पूछते हैं सार किस २ के घर में पहरा बिठला- वैगी? माता पिता इस अवस्था में ब्याह ही न करें तो ऐसा अनर्थ क्यों हो ? सर्कार की दुहाई देने का क्या काम है ? दूसरा प्रस्ताव यह था कि यदि कोई पुरुष समाज संशोधन का प्रण करके और इस सभा का मेम्बर हो के नियम विरुद्ध चले तो दंड पावै। खैर यह एक मामूली बात है, कोई विशेषता नहीं है। तीसरा प्रस्ताव १९५६ वाले विधवा विवाह आईन के सुधार पर था। यह निरार्थ था। अच्छे हिन्दू मुसलमान अभी बिधवा विवाह के समर्थक ही नहीं हैं । जो इने गिने हैं भी वे समाज में सम्मानित नहीं हैं। और यदि व विवाह की प्रथा उठ नाय तो विधवा विवाह की बड़ी आव. श्यकता ही न रहे। फिर यह कुसमय को गगिनी छेड़ना समय की हत्या करना न था तो क्या था ? सच तो यह है कि मरे हुए पति की सम्पत्ति अन्यगामिनी विधवा को दिलाने के लिये सर्कार का आश्रय लेना देश में दुराचार के आधिक्य में सहाय देना है। इसमें समाज का क्या भला होगा ? चौथा प्रस्ताव अति ही विचित्र था, अर्थात् विधवा होने पर जब तक स्त्री पंवों और मजिस्ट्रेट के सामने अपने केश कटवाने की सम्मति न दे दे तब तक उसके बाल न काटे जायं । यदि कोई उसकी इच्छा के बिना ऐसा करे तो राजनियम का अपराधी हो। वाह री नई सम्यता! भारतीय विधवा न ठहरी बीरांगना ठहरी ! इसमें उसे कष्ट क्या होता है ? हानि क्या होती है ? सही २ बातों के लिये कानून बनवाने से देश का क्या हित होगा? जो बातें प्रजा स्वयं कर सती है उनमें राजा को हाथ डालना कहां की नीति है ? यदि यही सुधार है तो अगले वर्ष एक विचार होगा कि ब्याह के समय सड़कों को रंगीन कामा पहिनना पड़ता है इससे के लिल्ली घोड़ो का सा स्वांग बन जाते हैं, व स्कूल के पढ़ने तथा कोट पतलून पहनने वाले लड़कों की रुचि के विरुद्ध है, इससे कानून बनना चाहिये कि जब तक लड़का कई लोगों के सामने मजिस्ट्रेट के आगे सम्मति न प्रकट करै तब तक माता पिता उसे झंगवा पहिना के स्वांग न बनावै नहीं सजा पावेंगे। भला ऐसी बातों से समाज का कौन सा अभाव टल जायगा? हमारे राजनैतिक प्रतिनिधियों को चाहिये कि इस विषय में चुने २ पंडितों और मौलबियों को उत्तेजना दें कि वे प्रत्येक समुदाय के मुखिया लोगों को इस ओर झुकाते रहें कांग्रेस की भांति समय २ पर ठौर यतद्विषयक व्याख्यान दिये जाय । समाचार पत्रों में लेख लिखे जायं । चंदा एकत्र किये जायं। छोटी २ पुस्तके घोड़े मूल्य पर वितरित हों। अवसर पर नगर २ समूह २ से प्रतिनिधि भेजे जाया