पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/१०

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यह मालूम हो जायेगा कि बहुतेरों ने तो तुलसीकृत रामायण तक एक बार भी आदि से अंत तक नहीं पढ़ी, यद्यपि तुलसीदास का नाम लेते ही वे बड़े आवेश में भर जाते हैं। औरों की तो क्या कथा है !

पंडित प्रतापनारायण मिश्र की भी कुछ कुछ यही दशा हुई है। उनका वास्तविक साहित्यिक महत्त्व तो करीब करीब विस्मृति में विलीन हो गया है। उनकी जीवन-संबंधी कुछ सच्ची घटनायें तथा बहुत सी मनगढंत बातें अलबत्ता बहुत से लोगों को याद हैं। फल यह हुआ है कि उनकी रचनाओं के अप्रका- शित होने से तथा उन पर किसी प्रामाणिक आलोचनात्मक लेख के अभाव में उनका साहित्यिक अस्तित्व तक लुप्त हो गया है। यही नहीं बड़े बड़े हिंदी विद्वान् तक यह नहीं समझ पाये हैं कि आधुनिक साहित्य से उनका क्या संबंध है।

इन्हीं कतिपय निर्मूल धारणाओं को दूर करने के लिए तथा मिश्र जी का साहित्यिक महत्त्व अविकल रूप से अंकित करने के लिए प्रस्तुत संग्रह तैयार किया गया है।

वंश-विवरण तथा प्रारंभिक जीवन

पंडित प्रतापनारायण उन लेखकों में से हैं जिनका जीवन- वृत्तांत उतना ही रोचक होता है जितनी कि उनकी कृतियाँ। आगे चल कर उनके लेखों के जिन गुणों का उल्लेख किया जायगा उनके तद्रूप उनके चरित्र में सभी बातें पाई जाती हैं।

उनका जन्म संवत् १९१३ में पंडित संकठाप्रसाद जी