पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/४९

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नैतिक उद्देश्य की प्रबलता के कारण ऐसे पुरुष कोरे आत्मानंद के लिए कविता कम करते हैं।

प्रतापनारायण जी में यदि शिक्षा देने की इच्छा इतनी प्रबल न रही होती तो संभव है कि वे ब्रजभाषा के एक बड़े कवि हुए होते और सचमुच भारतेंदु के जोड़ के होते।

'छोटे छोटे मोटे कवि हम भी हैं और नागरी का कुछ दावा भी रखते हैं। उनका यह कहना केवल उनकी नम्रता का द्योतक है। हिंदी-साहित्य के निर्माणकर्ताओं में उनका स्थान ऊँचा रहेगा और उनकी सहृदयता, विनोद-प्रियता, उनका लिखन-चातुर्य ये सब बातें चिरस्मरणीय रहेंगी।