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दक्षिणी ध्रुव की यात्रा

शेकल्टन साहब ने अपना एक दूसरा दल दाक्षिणात्य चुम्बक ध्रुव ( Sauth Magnetic pola ) की खोज के लिए दूसरी तरफ भेजा था। कहते हैं कि वह स्थान दक्षिणी ध्रुव से भी अधिक दुर्गम, निर्जन और भयड़्कर है। वहाँ तक पहुँचना बहुत बड़े साहस का काम था। तिस पर भी इस दल को कामयाबी हुई। इस दल के लोग १६ जनवरी १९०९ को उस चुम्बकीय ध्रुव के पास पहुँच गये और वहाँ अपने देश का दिग्विजयी झंडा गाड़ दिया। इस पर भी इन लोगों के पहले कोई मनुष्य न पहुँचा था।

शैकल्टन साहब और उनके साथियों ने दक्षिणी ध्रुव की इस चढ़ाई में कौन कौन सी बातें जानी---अथवा यों कहिए कि कौन कौन से अद्भुत और साहसिक काम किये तथा किन किन बातों की खोज की---इसका विवरण इस प्रकार है।

(१) ये लोग ऐसे स्थान पर पहुँच गये जहाँ से दक्षिणी ध्रुव केवल ११ मील की दूरी पर था।

(२) दक्षिणात्य-चुम्बक ध्रुव तक भी पहुंँचे।

(३) आठ पर्वत श्रेणियों को खोज निकाला।

(४) कोई एक सौ पर्वतों की पैमाइश की।

(५) एरीबस नाम के ज्वालामुखी पर्वत पर चढ़े। यह पर्वत १३,१२० फुट ऊँचा है।