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पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/१०९

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दक्षिणी ध्रुव की यात्रा

होती थी। वह माफ और गन्धक की गैस को इतनी तेजी से उगल रहा था कि उसकी लपटें बीस हजार फुट की उँचाई तक जाती थीं। इस स्थान के कई फोटो लिये गये और बहुत से भूगर्भ विद्या-सम्बन्धी पदार्थ भी इक्ट्ठे किये गये। इसके बाद वे लोग वहाँ से लौट पड़े और दूसरे दिन, ११ मार्च को अपने नियत स्थान पर पहुंँचे। कोई तीन महीने तक इस पहाड़ के चारों ओर शान्ति रही। एकाएक १४ जून १९०८ की रात को वह फट पड़ा। पर्वत के चारों ओर की भूमि अग्निमय हो गई। यह घटना शुक्ल पक्ष की है। चाँदनी रात में बर्फीले पहाड़ पर धधकती हुई अग्नि का कलोल करना, भयानक होने पर भी, कैसा सुन्दर दृश्य था, इसको वही समझ सकते है जिन्होंने उसे देखा है। शेकलटन साहब के साथियों में इस मनो मुग्धकारी दृश्य के कई फोटोग्राफ लिये।

शैकलटन साहब के साथ कोई आठ दस विज्ञान वेत्ता भी गये थे। उनमें से हर मनुष्य विज्ञान की एक न एक शाखा का पण्डित है। उन लोगों ने अपना अपना काम बड़ी खूबी से पूरा किया। किसी ने ज्योतिष्क तारवाओं की जाँच को; किसी ने वायुमण्डल की परीक्षा की; किसी ने जल की, किसी ने जल-जन्तुओं की, किसी ने वनस्पतियों की। फोटोग्राफरों ने फोटो लिये। पैमायस करने वालों ने पैमायश की और संग्रह करने वालों ने नाना प्रकार की