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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

जा पहुँचे। अब उन्होंने सोना और आराम करना बहुत कम कर दिया। दौड़ने ही की उन्होंने धुन बाँधी। जरा आराम करना और फिर दोड़ लगाना। चौबीसवें पड़ाव पर पीरी ने जो यन्त्र से दूरी जाँची तो मालूम हुआ कि वे लोग अक्षांश ८९ कला २५ पर पहुँच गये हैं। अब वे बारह बारह घंटे में चालीस चालीस मील चलने लगे। छब्बीसवें पडाव पर वे अक्षांश ८९ क या ५७ पर जा पहुँचे। वहाँ से उत्तरी ध्रुव केवल ३ कला अर्थात् ३ मील से कुछ अधिक दूर था। बस फिर क्या था, फिर कूच किया गया और वह तीन मील का सफर भी तैकर डाला गया। ठीक उत्तरी ध्रुव पर जा कर ५ एप्रिल १९०९ को पारी ने उसे अपने पैरों के स्पर्श से पुनीत किया।

२६ घण्टे तक पीरी उत्तरी ध्रुव की जाँच करते रहे। वहाँ से पाँच मील पर बर्फ के टूट जाने से समुद्र निकल आया था। उसकी गहराई नापने की आपने कोशिश की। पर थाह न मिली। इस नाप जोख में नापने का तार ही टूट गया।

अब पीरी ने बड़ी फुर्ती से लौटने की ठानी। लौटते वक्त उन्होंने अपनी रफ्तार और भी बढ़ा दी। जितनी दूरी को उन्होंने जाते समय २६ पड़ाव में से किया था उतनी को लौटती बार सिर्फ १५ पड़ाव में तैकिया। इस प्रकार दौड़ने में साँड़नी सवार को भी मात करके कमांडर साहब २५ एप्रिल को कोलंबिया अन्तरीप तक पहुँच गये। दो