पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/१९

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शिक्षा

रुकावटें पैदा करके, बराबर उलट फेर किया करते हैं, उन बातों का ज्ञान प्राप्त करने में उन्होंने बहुत बड़ी निर्दयता की बेपरवाही की है। उन्हें सीखने की जरा भी कोशिश उन्होंने नहीं की। आरोग्य-रक्षा और शरीरशास्त्र के बहुत ही सीधे सादे नियमों का भी ज्ञान प्राप्त न करने के कारण वे अपने बच्चों के आरोग्य को---उनके शारीरिक बल को---बराबर क्षीण करते चले जा रहे हैं---हर साल उसे अधिकाधिक कम करते चले जा रहे हैं। इस तरह की निर्दयता और नादानी के कारण वे अपनी सन्तति ही को नहीं, किन्तु सन्तति की भावी सन्तति को भी बीमारी के घर और अकाल मृत्यु के मुंँह में फेक रहे हैं।

[२]

जब हम आरोग्य शिक्षा से आगे बढ़कर नैतिक शिक्षा को तरफ आते हैं तब वहाँ भी हम इसी तरह को नादानी और अज्ञानता देखते हैं। वहाँ भी हमें माँ बाप की बेपरवाही और मूर्खता के उदाहरण मिलते हैं। लड़कपन में बच्चों के पालन-पोषण का भार सिर्फं माँ पर रहता है। इससे उनको सबसे पहली शिक्षा माँ ही से मिलनी चाहिए। अब जरा कम-उम्र की माँ, और उसके बच्चों को खिलाने पिलाने वाली दाई की योग्यता का विचार कीजिए। माँ के जारी किये हुए कानूनों पर तो जरा ध्यान दीजिए। अभी