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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

सही सही ज्ञान प्राप्त करने, किसी विषय की बारीक खोज करने, और अपने आप---स्वाधीनता पूर्वक---किसी बात का विचार करने की बहुत ही थोड़ी शक्ति लड़कों में होता है। इन सब बातों के सिवा प्राप्त किये गये ज्ञान का बहुत सा हिस्सा व्यवहार में बहुत ही कम काम देता है। उसकी कीमत बहुत ही कम होती है। सारांश यह कि लड़कों की शिक्षा में अत्यन्त उपयोगी और अत्यन्त महत्त्व से भरे हुए ज्ञान का एक बहुत बड़ा समूह फटकने तक नहीं पाता। वह बिलकुल ही निकाल बाहर किया जाता है।

यह हल लड़कों की शिक्षा का है। और ऐसा होना ही चाहिए। माँ-बाप की जैसी स्थिति है उस से इसी बात का अनुमान भी किया जा सकता है। माँ-बाप की दशा देख कर अनुमान से भी यह बात जानी न जा सकती है कि जो हाल लड़कों की शिक्षा का इस समय है वही हो सकता है। जैसा कारण, वैसा ही कार्य। लड़कों का शारीरिक, नैतिक और बुद्धि-विषयक शिक्षा इतनी दोषपूर्ण है कि उसका ख़याल कर के डर मालूम होता है। शिक्षा-प्रणाली के इतना दोषपूर्ण होने का बहुत कुछ कारण खुद माँ-बाप हैं। क्योंकि जिस ज्ञान की बदौलत, जिस विद्या की बदौलत, जिस शिक्षण की बदौलत लड़कों की शिक्षा ठीक तौर पर हो सकती है, उससे वे बिलकुल ही कोरे हैं। उसका लेश भी उन में नहीं। किसी बहुत ही